Saturday, July 27, 2024
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    अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के मध्‍य हुआ ऑकस समझौता, जिसके चलते चीन है नाराज़

    अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के मध्‍य हुए रक्षा समझौते पर चीन कहा कि ये ‘शीत युद्ध की जैसी मानसिकता को दिखाता है. इस समझौते के अर्न्‍तगत अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया के साथ न्यूक्लियर पन्नडुबी की तकनीक साझा करेगा। जानकारों का कहना है कि यह सुरक्षा समझौता एशिया पैसेफ़िक क्षेत्र में चीन के प्रभाव को कम करने के लिए किया गया है। यह क्षेत्र सालों से विवाद का केन्‍द्र रहा है और तनाव बना हुआ है.

    चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने कहा, “इन्हीं वजहों से हथियारों के अंतरराष्ट्रीय प्रसार को रोकने के प्रयासों को धक्का लगता है.” चीनी की सरकारी मीडिया ने इस समझौते पर विरोध दर्ज करते हुए संपादकीय लेख प्रकाशित किये हैं.

    ग्लोबल टाइम्स ने एक लेख में लिखा है कि इस समझौते के बाद से ऑस्ट्रेलिया ने चीन को अपना विरोधी बना लिया है.

    50 वर्षों में पहला अवसर है जब अमेरिका अपनी पनडुब्बी तकनीक किसी अन्‍य देश से साझा करने जा रहा है. इससे पहले अमेरिका ने केवल ब्रिटेन के साथ यह तकनीक साझा की थी.

    इसका मतलब यह है कि ऑस्ट्रेलिया अब परमाणु-संचालित पनडुब्बियों का निर्माण करने में सक्षम होगा जोकि पारंपरिक रूप से संचालित पनडुब्बियों के तुलना में कहीं अधिक तेज़ और सटीक मारक क्षमता से लैस होंगी. ये व‍िशेष पनडुब्बियां महीनों तक पानी के अन्‍दर रह सकती हैं और लंबी दूरी तक निशाना लगा कर मिसाइल दाग सकती हैं.

    तीनों देशों ने ऑकस सुरक्षा समझौते पर एक संयुक्त बयान जारी कर कहा कि “ऑकस के तहत पहली पहल के रूप में हम रॉयल ऑस्ट्रेलियाई नौसेना के लिए परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों का निर्माण करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.”

    विश्लेषकों का कहना है कि द्वितीय विश्व युद्ध के पश्‍चात इन देशों के मध्‍य का यह गठबंधन (ऑकस) अब तक के सुरक्षा समझौतों में सबसे महत्वपूर्ण है.

    इस साझेदारी के पश्‍चात ऑस्ट्रेलिया पहली बार परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियाँ विकसित कर सकेगा। और परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों को संचालित करने वाले देशाें की सूची में ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हो जाएगा और यह ऐसा करने वाला दुनिया का सातवां देश बन जाएगा.

    परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों को संचालित करने वाले देशाें की सूची में पहले से ही अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, चीन, भारत और रूस है, जिनके पास यह तकनीक उपलब्‍ध है. इस ऑकस समझौते के अंर्तगत क्वांटम टेक्नोलॉजी, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और साइबर साझेदारी भी शामिल है.

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