Saturday, July 27, 2024
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    तीन साल शोध के पश्चात विशेषज्ञों को मिली सफलता, आंखों की लाइलाज रोग का ढूंढ़ा उपचार

    कानपुर, आंख के पर्दे (रेटिना) की लाइलाज बीमारी सीरस पीईडी (पिगमेंट इपिथलियस डिटैचमेंट) का गणेश शंकर विद्यार्थी स्मारक चिकित्सा महाविद्यालय के नेत्र रोग विभाग के अध्यक्ष ने 3 साल के शोध के पश्‍चात उपचार ढूंढ़ लिया है। इस रोग से ग्रसित 15 रोगियों का अब तक सफल उपचार कर चुके हैं। शोध को अंतरराष्ट्रीय अमेरिकन जर्नल में प्रकाशन हेतु दिया गया है, जिसे स्वीकृती भी मिल चुकी है।

    विभाग के प्रमुख प्रो. परवेज खान का कहना है कि आधुनिक चिकित्सा की पुस्तकों में इस रोग का अभी तक कोई उपचार न होने का जिक्र है। इस रोग को लेकर अब तक अनेक शोध हुए हैं, जिसमें आंख के विट्रस में एंटी बीईजीएफ का इंजेक्शन लगाया जाता है, लेकिन वह पूर्णत: ठीक होने की गरेंटी नहीं था।

    आंख के पर्दे अर्थात रेटिना के मैकुला के द्वारा ही हम सभी को स्पष्ट दिखाई देता हैं। जब आंख के पर्दे के मैकुला में संक्रमण हो जाता है तो मैकुला में छिद्र (होल) हो जाता है। जिस वजह से आंख के बीचोबीच दाग नजर आने लगता है, जिससे कुछ भी साफ दिखाई नहीं पड़ता है। मैकुला के छिद्र को स्कोटोमा कहते हैं। स्कोटोमा के कारण से आंख को ठीक प्रकार से रोशनी नहीं मिल पाती है, जिससे कोई सुक्ष्म कार्य करने अथवा पढ़ने लिखने में समस्या होने लगती है।

    विभाग के हेड प्रो. परवेज खान ने एक अलग प्रकार की सुप्रा कोराइडल निडिल बनवाया है, जिसका उन्होंने पेटेंट भी ले लिया है। इस निडिल के माध्यम से आंख के सुप्रा कोराइडल स्पेस के रूट पर एंटी वैस्कुलर इंडोथेलियस ग्रोथ फैक्टर (एंटी बीईजीएफ) का 0.1 मिली लिटर डोज लगाया गया। एंटी बीईजीएफ का डोज लगाने के 1 महीने पश्चात जब रागियों की जांच की गई तो सकारात्मक परिणाम देखने को मिला। पीड़ित रोगी के आंख में दिखने वाला धब्बा पूरी से साफ हो चुका था। उन्हें स्पष्ट दिखाई पड़ने लगा था। अब तक इस लाइलाज रोग से पीड़ित 15 मरीजों का सफल उपचार कर चुके हैं।

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